वनकर्मियों के पास खुद के बचाव के लिए साधन – संसाधन नहीं, ऐसे तो कैद में होता तेंदुआ!
पब्लिक वार्ता – रतलाम,
जयदीप गुर्जर। रेलवे कॉलोनी क्षेत्र में देर रात तक तेंदुए की लुकाछिपी से लोगों में दहशत बनी हुई है। रविवार को तेंदुआ एक सीसीटीवी फुटेज में भी कैद हुआ है। रविवार शाम से ही लेट लतीफ वन अमला तेंदुए की तलाश कर रहा है। अब तक तेंदुआ पकड़ से बाहर है। ट्रेस हुए तेंदुए के पंजे के निशान मिले है। यह नर तेंदुआ है जो कि युवा अवस्था में है। इसकी उम्र करीब डेढ़ से दो वर्ष तक बताई जा रही हैं। विभाग ने लोगों से घरों में रहने की अपील की है। रविवार देर रात 12 बजे करीब उड़नदस्ते ने तेंदुए को रेलवे कॉलोनी में ट्रेस किया। जिसके बाद वहां पिंजरा रखकर उसे पकड़ने की कोशिश की गई। इस दौरान तेंदुआ झाड़ियों में दुबक कर बैठा था। मगर रात 3 बजे करीब वन विभाग की टीम को चकमा देकर तेंदुआ जेवीएल की तरफ भाग निकला। वहीं डीएफओ डीएस निगवाल का कहना है की तेंदुआ शहर से बाहर निकल चुका है। मगर एहतियात के तौर पर टीम को सर्चिंग पर लगा रखा है। ड्रोन से इंडस्ट्रियल एरिया समेत आसपास के क्षेत्रों में सर्चिंग की जा रही है।
उज्जैन से रेस्क्यु टीम रात 10 बजे आई जिसके बाद इंदौर से भी सोमवार तड़के 4 बजे रेस्क्यू टीम रतलाम पहुंची। खबर लिखे जाने तक तेंदुए के दिखाई देने की अफवाहों का बाजार गर्म रहा और टीम इधर से उधर मूवमेंट करती नजर आई।
गौरतलब है की रविवार शाम 4 बजे करीब लोगों ने तेंदुआ देखा। तब रहवासियों की भीड़ व शोर के चलते यह और आक्रामक होकर भागता रहा। वही कॉलोनी की बाउंड्रीवॉल पर तेंदुए को देखने चढ़े सतीश मीणा पर हमला पर उसे घायल कर दिया था। इसे रेलवे अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में भर्ती किया गया।
जिले में एक उड़नदस्ता, जरूरी साधन तक नहीं :
तेंदुए की सूचना मिलने के बाद पहुंचे वन अमले के पास जरूरी साधन तक उपलब्ध नहीं थे। जिले में जंगली जानवरों को काबू में रखने या पकड़ने के लिए केवल एक रेस्क्यू टीम है जिसे उड़नदस्ता कहा जाता है। तेंदुए की ट्रेसिंग के वक़्त यह उड़नदस्ता आलोट था। जिसे रतलाम आने में 1 घण्टे से अधिक समय लगा।
ट्रेंकुलाइजर गन की बात करे तो पूरे संभाग में केवल एक गन उपलब्ध है। जिसे चलाने के लिए विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है। यह गन खुंखार जानवरों को बगैर नुकसान पहुंचाए स्थिर कर देती है। जिसमें बेहोशी की ड्रग की मात्रा व निशाना लगाने की दूरी का पैमाना तय होता है। इसकी कीमत 3 लाख से लगाकर8 लाख तक की होती है। यह गन रात में अमले के पास मौजूद होती तो तेंदुआ अभी कैद में होता। सूत्रों के अनुसार सैलाना में तेंदुआ पकड़ने के दौरान इंदौर की टीम के पास जो गन थी वह गिरकर खराब हो चुकी थी। जिसके बाद इंदौर की टीम उज्जैन से गन लेकर चली गई। रात में उज्जैन की टीम समय पर तो पहुंची मगर उसे ट्रेकुलाइस गन का इंतजार करना पड़ा।
तेंदुए जैसे खतरनाक प्रजाति की सर्चिंग के दौरान वन अमले के पास ना तो खुद की सुरक्षा के लिए साधन उपलब्ध थे ना ही पैक्ड जिप्सी! ऐसे में तेंदुआ अगर इन पर हमला करता है तो भगवान ही मालिक है। जिले में लगातार हो रही तेंदुए की मूवमेंट के बाद भी जिले में संसाधनों का अभाव होना चिंता का विषय है। सूत्रों की माने तो जिला वन मुख्यालय साधनों की पूर्ति के लिए पत्र भी लिख चुका है, मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।