MP’s Vyapam Scam: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया, 11 साल में कहां पहुंची जांच!

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व्यापमं घोटाले (Vyapam Scam) में 2010 से 2013 तक की अवधि में हुए भ्रष्टाचार पर जिम्मेदार अधिकारियों से पूछताछ की मांग, एसटीएफ और सीबीआई पर घोटाले की जांच में बड़े अधिकारियों को बचाने का आरोप!

भोपाल – पब्लिक वार्ता,
जयदीप गुर्जर। सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित व्यापमं घोटाले (Vyapam Scam) के मामले में सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस पूर्व विधायक और व्यापमं घोटाले के व्हिसिल ब्लोअर पारस सकलेचा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया गया। सकलेचा ने व्यापमं घोटाले में 2010 से 2013 तक की अवधि में हुए भ्रष्टाचार पर जिम्मेदार अधिकारियों से पूछताछ की मांग की थी, जो पहले इंदौर हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई थी।

आपको बता दे 2013 में मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। माना जाता है कि आजाद भारत में व्यापमं सबसे बड़ा घोटाला रहा। मामले में जब जांच शुरू हुई तो जांचकर्ता और आरोपियों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने लगी। घोटाले के तार मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्र प्रदेश समेत राज्यों से जुड़े होने की बात सामने आई। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचने पर इस मामले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) को सौंप दी गई।

व्यापमं घोटाला जांच में गड़बड़ी के आरोप
पारस सकलेचा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि एसटीएफ और सीबीआई ने व्यापमं घोटाले की जांच में बड़े अधिकारियों को बचाने के लिए कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों को शामिल नहीं किया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जांच में लीपापोती की गई है और सिर्फ छोटे रैकेटियर, दलाल, स्कोरर, छात्र और अभिभावकों पर ही कार्रवाई की गई है। सकलेचा का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर चलने वाला रैकेट सरकार और प्रशासन की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।

850 पेज का दस्तावेजी साक्ष्य पेश
सकलेचा ने अपने आवेदन में लगभग 850 पेज के दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए हैं, जिसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा सचिव, और व्यापमं के उच्च अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। सकलेचा का दावा है कि इन बड़े अधिकारियों की संलिप्तता के बिना व्यापमं जैसा बड़ा घोटाला संभव नहीं था।

इंदौर हाईकोर्ट से निरस्त हुई थी याचिका
इससे पहले, पारस सकलेचा ने व्यापमं घोटाले को लेकर इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे 19 अप्रैल 2024 को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां पर आज जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है।

आरोप: बड़े अधिकारियों पर नहीं हुई कार्रवाई!
सकलेचा ने अपने आवेदन में कहा कि एसटीएफ और सीबीआई को व्यापमं घोटाले के बारे में विस्तृत जानकारी और दस्तावेज देने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने एसटीएफ को 350 पेज का आवेदन और मौखिक साक्ष्य के अलावा 240 पेज के दस्तावेज सौंपे थे। इसके बावजूद, बड़े अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और केवल छोटे स्तर के लोगों पर ही शिकंजा कसा गया।

प्रशासन और सरकार की भूमिका पर सवाल
पारस सकलेचा ने कहा कि व्यापमं घोटाले की जांच में प्रशासन और सरकार की भूमिका संदिग्ध रही है। उन्होंने बताया कि 2009 में जब व्यापमं घोटाले का पर्दाफाश हुआ था, तब भी निजी चिकित्सा महाविद्यालयों की भर्ती की जांच नहीं की गई, जबकि यह भी घोटाले का एक प्रमुख हिस्सा था।

व्यापमं घोटाला खुलासे से जुड़े व्हिसलब्लोअर डॉ आनंद राय व पूर्व विधायक पारस सकलेचा

अब आगे क्या ?
व्यापमं घोटाले (Vyapam) की जांच को लेकर पारस सकलेचा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है और क्या बड़े अधिकारियों पर कोई कार्रवाई की जाती है। गौरतलब है की व्यापमं घोटाले को करीब 11 साल हो चुके है। मध्यप्रदेश सरकार के मुताबिक रिश्वत लेकर प्रवेश परीक्षाओं और भर्तियों में नकल करने के मामले में 4046 लोगों को आरोपी बनाया गया। इसमें से 956 आरोपियों की गिरफ्तारी अब तक नहीं हो पाई है। वहीं CBI ने 1242 लोगों को आरोपी बनाया है। गौर करने वाली बात यह है कि इस मामले में मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल राम नरेश यादव के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज है। इतना ही नहीं व्यापमं घोटाले में तत्कालीन शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक घोटाले से जुड़े 40 से ज्यादा लोगों की संदिग्ध परिस्थतियों में मौत हो चुकी है। इनमें टीवी चैनल आजतक के पत्रकार अक्षय सिंह भी शामिल है, जिनकी मौत झाबुआ में एक इंटरव्यू के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। घोटाले के व्हिसलब्लोअर डॉक्टर आनंद राय बताते हैं कि यह घोटाला पूरी तरह से पिरामिड की तरह काम कर रहा था। इस पिरामिड में सबसे नीचे स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट्स थे। जबकि ऊपर रसूखदार लोग थे, जिन्हें इस पूरे घोटाले का पैसा जा रहा था। जो रसूखदार लोग थे उन्हें कभी जेल नहीं हुई। कुछ लोग जेल गए भी तो सबूत के अभाव में छूट गए। 

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