MP News: मध्यप्रदेश के इस शहर में मुर्दे नहीं दीपक जलाते है; दिवाली पर फुलझड़ियों व रंगोलियों से सजता है श्मशान, जानिए क्या है वजह

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रतलाम – पब्लिक वार्ता,
न्यूज डेस्क। MP News: मध्यप्रदेश के रतलाम में दिवाली से एक दिन पहले श्मशान दीपक से जगमगाते हुए दिखेगा। यहां रंगोलियां बनाई जाती है, आतिशबाजियां होती है। आमतौर पर श्मशान में जाने से लोग कतराते है, वो भी किसी खास त्योहार वाले दिन। लेकिन यहां इसके बिल्कुल उल्टा है। शहर का प्रसिद्ध त्रिवेणी मुक्तिधाम बुधवार शाम को दीपदान के आयोजन से जगमगा उठा। पूरे परिसर को रंगोली और दीपों से सजाया गया, जहां बच्चों ने फुलझड़ियां जलाकर और लोगों ने आतिशबाजी करके इस विशेष मौके को मनाया। महिलाओं ने ढोल की थाप पर पारंपरिक नृत्य कर माहौल को उल्लासमय बना दिया। त्रिवेणी मुक्तिधाम के अलावा शहर के भक्तन की बावड़ी और जवाहर नगर मुक्तिधाम में भी दीपों का यह उजाला देखने को मिला।

रंगोली बनाते प्रेरणा समाजिक व सांस्कृतिक संस्था के सदस्य

आयोजन को करने वाले संस्था के प्रमुख सदस्य गोपाल सोनी ने बताया, “दीपावली का यह 5 दिवसीय पर्व न केवल हमारे घर-आंगन को रोशन करता है, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का भी एक माध्यम है। हम मुक्तिधाम में दीप जलाकर, रंगोली सजाकर, और आतिशबाजी कर पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं। इससे हम यह प्रार्थना करते हैं कि यदि हमारे पूर्वज अंधकार में हों, तो वे प्रकाश की ओर जाएं।” सोनी के अनुसार, इस परंपरा का आरंभ 2006 में हुआ था, और अब यह हर वर्ष बड़े उत्साह से मनाई जाती है।

तस्वीर में एक और जलती हुई चिता और दूसरी और जगमगाते दिवाली के दीपक

मोनिका शर्मा, जो अपने परिवार के साथ इस अवसर पर आईं, ने बताया, “पहले मुक्तिधाम में आने से लोग हिचकते थे, लेकिन अब यह परंपरा का हिस्सा बन गया है और सभी लोग इसमें शामिल होकर दीपदान करते हैं।” इस आयोजन का धार्मिक महत्व भी है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर किए जाने वाले इस दीपदान का उद्देश्य यमराज से यमयातना से मुक्ति प्राप्त करना है। गोपाल सोनी ने बताया, “नरक चतुर्दशी के इस दिन यमराज को दीपदान करने का विधान है, जिससे हमारे पूर्वजों को शांति प्राप्त होती है।

माना जाता है कि राजा बलि ने इस दिन का वरदान मांगा था कि जो व्यक्ति इस दिन यमराज को दीपदान करेगा, वह दुखों से मुक्त रहेगा।” पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्वजों की प्रसन्नता से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और पितृदोष भी समाप्त हो जाता है। रतलाम में इस अद्वितीय आयोजन ने न केवल पूर्वजों की स्मृति को जीवित रखा है बल्कि समाज में आस्था और परंपरा के महत्व को भी उजागर किया है।

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