
रतलाम – पब्लिक वार्ता,
जयदीप गुर्जर। Ratlam News: आम जनता के खून-पसीने की कमाई से कमाया पैसा अगर व्यापारी की ठगी में चला जाए, तो इसे लूट नहीं तो और क्या कहा जाए? रतलाम के प्रतिष्ठित समझे जाने वाले फुटवियर शोरूम “न्यू नाइस फुटवियर” द्वारा उपभोक्ता के साथ की गई लूट अब उजागर हो चुकी है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रतलाम ने इसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करते हुए न केवल उपभोक्ता को पूरा न्याय दिलाया, बल्कि फुटवियर व्यापारी को मुआवजा भी भरने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई आयोग के अध्यक्ष मुकेश कुमार तिवारी व सदस्य जयमाला संघवी ने की।
क्या था मामला?
24 वर्षीय मंथन मुसले नामक युवक ने इस शोरूम से 1350 रुपये के जूते खरीदे। दुकानदार ने इसे ‘उत्तम गुणवत्ता’ के नाम पर ऊँचे दामों में थमा दिया। लेकिन यह जूते महज़ एक दिन में ही फट गए। जब उपभोक्ता ने दुकानदार से शिकायत की, तो उसे टालने और बहलाने की कोशिश की गई। जब वह पुनः शिकायत लेकर दुकान पहुँचा, तो जूते बदलने की बजाय उसे दुकान से भगा दिया गया।
यह न केवल उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी थी, बल्कि एक खुली ठगी थी – और इसे बेनकाब करना ज़रूरी था। मंथन ने इस मामले को उपभोक्ता आयोग में उठाया, और निर्णायक तरीके से न्याय पाया। मामले में दुकान संचालक मुस्तफा ने बताया की ग्राहक का जूता कुछ दिनों के बाद फट गया था। जिसे कुछ दिनों में बदलने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने बदलाया नहीं। उपभोक्ता फोरम के हर्जाना भरने के आदेश पर मुस्तफा ने कहा वे अपने वकील से सलाह लेंगे।
आयोग का फैसला – व्यापारी को लगेगा सबक
आयोग ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह ‘खरी-खरी लूट’ है। आयोग ने दोषी व्यापारी को आदेश दिया कि—
• उपभोक्ता को जूते की कीमत 1350 रुपये समेत 6% वार्षिक साधारण ब्याज के साथ लौटाई जाए।
• मानसिक क्षतिपूर्ति एवं न्यायिक खर्च के रूप में 3,000 रुपये अतिरिक्त दिए जाएं।
• यदि 60 दिनों में भुगतान नहीं किया गया, तो 8% वार्षिक ब्याज दर से यह राशि वसूल की जाएगी।
व्यापार के नाम पर धोखाधड़ी नहीं चलेगी!
यह फैसला उन लालची व्यापारियों के लिए चेतावनी है जो ग्राहकों को “ब्रांडेड” और “गुणवत्ता वाले” प्रोडक्ट के नाम पर घटिया सामान बेचते हैं। उपभोक्ता आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब आम जनता के अधिकारों से खिलवाड़ करने वाले व्यापारी बख्शे नहीं जाएंगे।
रतलाम की जनता अब जागरूक हो रही है – और यह फैसला इस मुहिम में एक बड़ा मील का पत्थर है।
अब जनता पूछ रही है – ‘क्या ऐसे दुकानदारों की दुकानें चलने लायक हैं?’