इप्का लेबोरेटरीज का दंगलः श्रमिकों का दिशाहीन आंदोलन कितना सही और कितना गलत?, आज हड़ताल का तीसरा दिन

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वेतन वृद्धि पर सुनवाई तक हाईकोर्ट का स्टे, मामला अब तक है लंबित! समझिए पूरा मामला…

पब्लिक वार्ता – रतलाम,
जयदीप गुर्जर। पिछले 3 दिनों से देश की नामी दवा निर्माता कंपनी इप्का लेबोरेटरीज (ipca Laboratories) की रतलाम यूनिट पर अस्थाई श्रमिकों द्वारा हड़ताल सुर्खियों में बनी हुई है। संभवतः पहली बार इतना बड़ा कोई आंदोलन इस कंपनी के विरुद्ध देखा जा रहा है। जिसमें रतलाम की लेबोरेटरी में संचालित करीब 20 से ज्यादा प्लांट ठप्प पड़े है और प्रोडक्शन पर सीधा असर पड़ रहा है। हैरानी की बात है अस्थाई श्रमिकों ने वेतन वृद्धि का मामले को कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में लिखा ही नहीं। बल्कि ज्ञापन पूरी तरह उन पर हो रहे शोषण, सम्मान और अधिकारों की बात पर केंद्रित रहा। आज हड़ताल का तीसरा दिन है। हड़ताली श्रमिक अन्य श्रमिकों को कंपनी में जाने से रोक रहे है। इसको लेकर पुलिस में कुछ हड़ताली श्रमिकों पर मुकदमा भी दर्ज हुआ है।
हालांकि इप्का के जनसंपर्क अधिकारी विक्रम कोठारी ने पब्लिक वार्ता को बताया की शासन जो दर तय करेगा हम उसी में भुगतान करने को तैयार है। हाईकोर्ट द्वारा स्टे देने पर श्रमिकों को पुरानी दरों से वेतन दिया गया। अगर शासन की दर बढ़ती है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है।

आपको बता दे इप्का लेबोरेटरीज ने रतलाम में अपना यूनिट सन 1985 में स्थापित किया था। जिसके बाद तकरीबन 39 साल से इप्का रतलाम में सफलता पूर्वक अपना प्रोडक्शन कर रहा है। वहीं रतलाम यूनिट इप्का लेबोरेटरीज की अहम यूनिट मानी जाती है। कंपनी में श्रमिकों के साथ अभद्र व्यवहार या शोषण की बातें गलत है। ऐसा है तो वे प्रबंधन में शिकायत सेल से शिकायत कर सकते है। जिस पर उचित कार्रवाई होती है।
उद्योगों की किल्लत और बेरोजगारी झेल रहे रतलाम में इप्का लेबोरेटरीज रोजगार का एक प्रमुख उपक्रम है। जिले के करीब 5 हजार परिवारों का रोजगार इससे सीधा जुड़ा है। हालांकि प्रदूषण संबंधी नियमों को ताक पर रखने के मामले में इप्का कई बार सुर्खियों में भी बनी रही है। इस बार भी मजदूरों की हड़ताल का कारण कुछ ऐसा ही माना जा रहा है। आइए जानते है की आखिर मजदूरों की इप्का के खिलाफ नाराजगी कितनी जायज है और उनका यह आंदोलन कितना सही या गलत है?

ठेकेदारों और श्रमिकों की लड़ाई में इप्का की फजीहत!
इप्का कंपनी में स्थाई और अस्थाई दो प्रकार से वर्कर काम करते है। अस्थाई में श्रमिक भी आते है जिन्हें अपनी उपस्थिति के अनुसार दैनिक वेतन मिलता है। अस्थाई श्रमिक आउटसोर्सिंग फर्म के कांट्रेक्टर या ठेकेदार द्वारा इप्का को मुहैय्या कराए जाते है। इप्का प्रबंधन का इन श्रमिकों में प्रत्यक्ष रूप से कोई हस्तक्षेप नहीं है। ठेकेदारों के साथ विशेष अनुबंध के जरिए इप्का अपने यहां श्रमिकों को रोजगार देती है। श्रमिकों का नियमानुसार बीमा, पीएफ, वेतन आदि का जिम्मा ठेकेदार की फर्म का होता है। इन श्रमिकों पर कंट्रोल व डायरेक्शन इन्हीं ठेकेदारी फर्म के सुपरवाइजर का होता है। रतलाम में जो श्रमिक इस समय हड़ताल कर रहे है वे सभी अस्थाई और दैनिक वेतन लेने वालों में है। अधिकांश श्रमिकों को वेतन वृद्धि की जानकारी है मगर उसमें वापस कटौती क्यों हुई इसकी कोई जानकारी नहीं है। ठेकेदारों और श्रमिकों के बीच की इस लड़ाई ने इप्का प्रबंधन को फजीहत में डाल दिया है।

ऐसे पकड़ा वेतनवृद्धि के मामले ने तूल
दरअसल मध्यप्रदेश में 1 अप्रैल 2024 से समस्त औद्योगिक एवं असंगठित श्रमिकों को 25 प्रतिशत अधिक मजदूरी देने का आदेश जारी किया गया। साल 2014 के पश्चात प्रदेश में पहली बार मजदूरों का वेज रिवीजन किया गया। इसके अनुसार प्रदेश में श्रमिकों को मई माह में बढ़ा हुआ वेतन मिला। लेकिन इसके बाद अगले महीने वापस पुरानी दर से भुगतान किया गया। इसके बाद श्रमिकों के बीच एक अपुष्ट खबर चली की जो वेतन बढ़ाकर दिया गया उसे वापस अगले माह के वेतन से काट लिया जाएगा। जिससे इप्का के श्रमिकों में असंतोष फैला और उन्होंने मौखिक विरोध शुरू किया। श्रमिकों में कई बातों का आक्रोश पहले से भरा पड़ा था। जिसमें ठेकेदार व सुपरवाइजर द्वारा उनसे अभद्र व्यवहार करना, गाली देना, ओवरटाइम, सम्मान नहीं देने जैसी बातें है, जिनको उन्होंने अपने ज्ञापन में लिखा भी है। बस इन्हीं सब कारणों से कंपनी में कुछ श्रमिकों ने विरोध का तरीका आंदोलन और हड़ताल है, यह समझाकर बाकी श्रमिकों को अपने साथ कर लिया। यह बात इप्का प्रबंधन तक पहुंची और ठेकेदारों के द्वारा श्रमिकों को समझाने का प्रयास अपने – अपने स्तर से शुरू हुआ। इसके बाद भी ठेकेदार श्रमिकों को तार्किक स्तर पर समझाने की बजाय उन पर अधिकार और धौंस जमाने की कोशिश करते रहे। जिससे मामला और बिगड़ गया। श्रमिकों ने ठेकेदारों के अंदाज को धमकी समझ लिया और फिर क्या था हड़ताल की चिंगारी को यहां से हवा मिल गई। और देखते ही देखते श्रमिकों ने एकजुट होकर कंपनी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। जिसके बाद आज तीसरे दिन यानी 12 जून को कंपनी के अंदर वर्कर की कमी से प्रोडक्शन और कंपनी के रेपो पर सीधा असर पड़ रहा है। आगे जानिए क्यों है दिशाहीन आंदोलन….

हाइकोर्ट का स्टे, अगली सुनवाई 1 जुलाई को!
औद्योगिक और असंगठित क्षेत्र से जुड़े ट्रेंड-अनट्रेंड सभी श्रमिकों के मेहनताने में 1 अप्रैल 2024 से बढ़ोतरी की गई। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई होने तक इस नोटिफिकेशन पर स्टे लगा दिया। दरअसल पीथमपुर औद्योगिक संगठन और मध्य प्रदेश टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन द्वारा वेतन बढ़ोतरी के नोटिफिकेशन को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई। इसमें कहा गया  कि इस नोटिफिकेशन को लागू करने में कई तरह की दिक्कतो का सामना करना पड़ रहा है। जिसके बाद डिवीजन बेंच ने इस मामले की सुनवाई होने तक इस पर स्टे का आर्डर दे दिया। जिससे पुनः श्रमायुक्त द्वारा पुरानी वेतन दर से भुगतान जारी करने के आदेश जारी किए गए। आपको बता दे इस मामले में सुनवाई दो बार टल चुकी है। इस मामले में अगली सुनवाई 1 जुलाई 2024 को होना है। वहीं श्रमिकों के एक संगठन भारतीय मजदूर संघ ने श्रमिकों के हित में एक एप्लीकेशन कोर्ट में दाखिल कर हस्तक्षेप किया है। प्रदेश महामंत्री कुलदीपसिंह गुर्जर के माध्यम से दायर एप्लिकेशन में पुराने आदेशों का हवाला देते हुए श्रमिकों की वेतन वृद्धि पर लगी रोक हटाने की मांग की है।

एक नजर ज्ञापन में रखी बातों पर डालिए
इप्का (IPCA) कंपनी और ठेकेदारों पर प्रताड़ित करने सहित कई गंभीर आरोप के साथ श्रमिकों ने कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपा।  श्रमिकों ने हड़ताल कर चेताया कि 7 दिन में मांगे नहीं मानी गई तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा। श्रमिकों द्वारा दिए ज्ञापन में बताया गया कि IPCA कंपनी के अंदर 8 घंटे ड्यूटी के हमे 500 रु प्रतिदिन दिया जाए, केमिस्ट व कंपनी के गार्ड तथा सुपरवाइजर हमे 8 घंटे ड्यूटी करने के बजाय 12 घंटे ड्यूटी करने पर विवश करते है अगर हम इनका कहा नहीं मानते है तो ये हमसे अभद्र भाषा में बात करते है। हमारे आईडी कार्ड छिनकर ब्लैक लिस्ट करवाने की धमकी देते है। हमे 8 घंटे की ड्यूटी चाहिए और ओवरटाइम इच्छा अनुसार होना चाहिए। सभी अस्थाई श्रमिको का बीमा होना आवश्यक हो। कंपनी के अंदर किसी भी प्रकार की शारीरिक हानि या दुर्घटना घटित होने पर आर्थिक सहायता प्राप्त हो। कंपनी के अंदर स्टाफ व सुपरवाइजर हम सभी श्रमिको से सम्मान पूर्वक बात करे ताकि हमे भी लगे की हम इंसान है तथा भारतीय है। कंपनी के अंदर कैंटीन में चाय नाश्ता व खाना बहुत खराब मिलता है जब अस्थाई श्रमिक आवाज उठाते हैं तो हमे चुप करा दिया जाता है। कंपनी के 4 नंबर गेट पर हेड रूम से दीपक सर अस्थाई श्रमिको को 5 मिनट लेट होने पर धक्के मारकर और मां बहन की गंदी गालियां देकर भगा देते है। कहते है की तुम साले कभी भी उठ कर चले आते हो तुम्हारे बाप की कंपनी है। कंपनी के अंदर ब्लैक लिस्ट हुए सभी श्रमिको को ब्लैक लिस्ट से बाहर निकाले तथा उन्हें भी आजीविका चलाने का अवसर दे। हमारे पास जो आईसी कार्ड है उस पर इप्का का श्रमिक होने का कोई सबूत नहीं है। कंपनी की और से सेफ्टी शूज हर 6 माह में दिए जाए। हमे बगैर वेतन कटौती के माह की 4 छुट्टियां दी जाए। गेट नं. 3 पर कंपनी के गार्ड हनुमान पाण्डे, मनीष राठौर, संजय शर्मा और रमेश पटेल, केपी राठौर, शरद शर्मा इनके द्वारा हम अस्थाई श्रमिकों के साथ अभद्र व्यवहार किया जाकर मानसिक प्रताडित किया जाता है। कंपनी तुरंत इन पर कार्रवाई करे।

जानिए क्यों है दिशाहीन आंदोलन….?
इन 3 दिनों में यह तो कई हद तक दिख रहा है की इप्का कंपनी में चल रहे इस आंदोलन को कुछ कतिपय सामाजिक नेता हवा दे रहे है। ऐसा कहा जा सकता है की अपनी राजनीति चमकाने के लिए श्रमिकों के कंधों का सहारा लिया जा रहा है। ज्ञापन देने से पहले श्रमिकों ने अपनी शिकायत ना तो कंपनी से की ना ही श्रम विभाग में जाना उचित समझा। सीधे मुखर होकर हड़ताल का रास्ता चुनकर अपनी बात मनवाने के प्रयास में जुट गए। इस आंदोलन से पहले किसी भी मजदूर संगठनों को साथ में नहीं लिया गया, ना उन्हें विषय से अवगत कराया गया। मजदूर संगठन के कुछ नेताओं ने उनसे संपर्क भी साधा लेकिन श्रमिकों ने कोई रुचि नहीं दिखाई। हड़ताल को हवा देने में कुछ कतिपय लोग ऐसे भी लगे है जिनका इप्का से कोई वास्ता नहीं है, केवल अपना नाम चमकाने के चक्कर में श्रमिकों को भड़काने का प्रयास किया गया। न्यायालय में लंबित मामला विचारधीन होता है, इसे समझने व फैसला आने से पहले ही श्रमिक उग्र हो गए। जबकी इसमें यदि सही दिशा मिलती तो सबसे पहले श्रमिक अपनी और से वेतन वृद्धि पर लगी रोक हटाने और उनके हित में फैसले का अनुरोध संवेधानिक तरीके से माननीय न्यायालय के समक्ष कर सकते है। इसके लिए श्रमिकों के हित से जुड़े कई संगठन भी उनका साथ दे सकते है।

पूरे मामले में देखा जाए तो ठेकेदार या कंपनी ने मनमर्जी से वेतन कम नहीं किया। और इप्का जैसी बड़ी नामी कंपनी में अगर शोषण, अभद्र व्यवहार, दुर्व्यवहार जैसी बातें सामने निकल कर आई है तो कंपनी को इस बारे में सोचना होगा। उन्हें श्रमिकों के प्रति अपने व्यवहार को बदलना होगा। ठेकेदार द्वारा बीमा, पीएफ, छुट्टी आदि की समस्या से भी श्रमिकों को निजात दिलाना आवश्यक है। उनके हितों की रक्षा के लिए इप्का प्रबंधन को जरूरी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही श्रमिकों को अपने हितों के लिए शिक्षित होने की आवश्यकता है। उन्हें यह भी समझ होना जरूरी है की अपनी बात कहां और कैसे रखी जानी चाहिए। इसके लिए उनका विभिन्न बड़े मजदूर संगठनों से जुड़े रहना जरूरी है, जो उनके हक और अधिकार की बात कर सके।

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