श्राद्ध कर्म ऐसा भी: 400 लावारिस अस्थियां एक साथ चढ़ी ट्रेन में, हरिद्वार पहुंची, लेकिन किसने दिलाया मोक्ष!

रतलाम – पब्लिक वार्ता,
जयदीप गुर्जर। श्राद्ध कर्म ऐसा भी: रतलाम जंक्शन पर सामान्य तौर पर लोग ट्रेन में चढ़ते उतरते देखे है। लेकिन क्या आपने कभी अस्थियों को ट्रेन में सफर करते देखा है? यहां एक अस्थि नहीं बल्कि 408 अस्थियां ट्रेन में सफर कर हरिद्वार पहुंची। ट्रेन में किसी शख्स के पास इतनी अधिक संख्या में अस्थियों को देखकर हर यात्री हैरान हो गया। हम बात कर रह है रतलाम के जनसेवी सुरेशसिंह तंवर की। सुरेशसिंह अपने साथी रवि तंवर के साथ ट्रेन में 408 लावारिस मृतकों की अस्थियां लेकर सवार हुए। इतनी अस्थियां देखकर ट्रेन के यात्री भी हिचकिचा गए। लेकिन जब उन्होंने इसकी कहानी सुनी तो सभी ने सराहना की।

सुरेशसिंह ने 408 लावारिस और असहाय व्यक्तियों की अस्थियों को हरिद्वार पहुंचकर पवित्र गंगा नदी में विधि-विधान से विसर्जित किया। यह कार्यक्रम क्षत्रिय खंगार उत्थान समिति रतलाम के बैनर तले आयोजित किया गया। श्राद्ध पक्ष के दौरान सुरेश तंवर पिछले 28 वर्षों से लगातार यह पुण्य कार्य कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने अब तक 2800 से अधिक लावारिस और असहाय लोगों की अस्थियों को मां गंगा की गोद में समर्पित किया है।

हरिद्वार में  गंगा किनारे तर्पण करते सुरेश



रतलाम से 400 अस्थि कलश लेकर हरिद्वार पहुंचे
इस वर्ष, सुरेश सिंह तंवर ने रतलाम के जवाहर नगर मुक्तिधाम से 408 अस्थि कलश लेकर ट्रेन के माध्यम से हरिद्वार की यात्रा की। हरकी पैड़ी पर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद इन अस्थियों का गंगा नदी में तर्पण और विसर्जन किया गया। सुरेश तंवर का यह प्रयास उन लोगों के लिए मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है, जिनके परिवार या परिजन उनकी अस्थियों का विसर्जन करने के लिए नहीं आ सके।

बड़े भाई के लापता होने के बाद से जारी है सेवा
सुरेश तंवर ने इस पुनीत कार्य की शुरुआत 28 साल पहले की थी, जब उनके बड़े भाई सोहन सिंह अचानक लापता हो गए थे। भाई की अनुपस्थिति और उनके बारे में अज्ञात स्थिति ने सुरेश को मानसिक रूप से काफी प्रभावित किया। इस चिंता और तनाव ने सुरेश को अनजान लोगों की अस्थियों का तर्पण करने की प्रेरणा दी, ताकि उनके भाई की खैरियत और मानसिक शांति सुनिश्चित हो सके। इस सेवा के माध्यम से सुरेश ने उन लावारिस व्यक्तियों की अस्थियों का विसर्जन करना शुरू किया, जिनके परिवार का कोई अता-पता नहीं था या जिनके परिजन उनकी अस्थियों को नहीं लेने आए।

भाई के लौटने के बाद भी जारी रहा पुण्य कार्य
इस अद्वितीय सेवा का परिणाम भी सुरेश को मिला, जब 24 साल बाद उनके भाई सोहनसिंह सकुशल वापस घर लौट आए। हालांकि, कोरोना काल के दौरान उनके भाई का निधन हो गया, लेकिन सुरेश ने अपने इस पुनीत कार्य को जारी रखा। आज, यह प्रयास न केवल सुरेश का व्यक्तिगत अभियान है, बल्कि समाज के कई लोगों का सहयोग भी उन्हें मिल रहा है।

कोरोना काल में भी जारी रहा कार्य
कोरोना महामारी के दौरान जब कई परिवार अपने मृतकों की अस्थियां लेने नहीं आ सके, तब सुरेश सिंह तंवर और उनकी टीम ने आगे बढ़कर उन अस्थियों का भी तर्पण किया। यह कार्य समाज सेवा और मानवता की मिसाल के रूप में उभर कर आया है। सुरेश सिंह के साथियों का कहना है कि वे इस अभियान को अनवरत जारी रखेंगे ताकि कोई भी लावारिस व्यक्ति मोक्ष से वंचित न रहे।

आम जनता का सहयोग बढ़ता जा रहा है
इस पवित्र सेवा के लिए अब सुरेश तंवर को आमजन से भी व्यापक सहयोग मिल रहा है। सुरेश के इस प्रयास से कई समाजसेवी और संगठनों ने भी जुड़ना शुरू कर दिया है। लोग आर्थिक मदद और अन्य संसाधनों के जरिए इस नेक कार्य में भागीदारी निभा रहे हैं। हरिद्वार में अस्थियों के विसर्जन के दौरान भी स्थानीय लोग और पुजारी इस पहल की सराहना करते हुए सुरेश सिंह की सेवाओं का आदर करते हैं।

समाजसेवा की मिसाल
रतलाम के सुरेश सिंह तंवर ने समाज सेवा के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, वह निस्संदेह अनूठा है। असहाय और लावारिस लोगों के अंतिम संस्कार और उनकी अस्थियों का विसर्जन, उनके द्वारा की जा रही एक अनोखी पहल है, जिसे हर किसी ने सराहा है। आज, जब 408 लावारिस अस्थियां हरिद्वार पहुंचीं और गंगा में विसर्जित की गईं, तब सुरेश सिंह की 28 वर्षों की समाजसेवा की इस यात्रा ने फिर एक नया अध्याय लिख दिया।