रतलाम – पब्लिक वार्ता,
जयदीप गुर्जर। Navratri Special: नवरात्रि की धूम पूरे देशभर में है। भक्त मां दुर्गा के नो स्वरूपों की आराधना में जुट गए है। वहीं मध्यप्रदेश के रतलाम में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां जिंदा इंसान के साथ – साथ मुर्दा इंसान भी जाता है। इस मंदिर में जाने से पहले आपको जलती चिताओं के पास से गुजरना होगा। जिसके बाद आप मंदिर में पहुंचकर मां कालिका के दर्शन करेंगे। यह मंदिर रतलाम के महू रोड बस स्टैंड स्थित भक्तन की बावड़ी पर स्थित श्मशान में है। यहां मां काली के रुद्र स्वरूप की प्रतिमा स्थापित है। इसका निर्माण काले पाषाण से किया गया है।
मां कालिका की मूर्ति में तेज और प्रताप ऐसा है की आप मंत्रमुग्ध हो जाए। मानो साक्षात देवी आपके सामने प्रकट है। श्मशान में स्थापित इस मंदिर की विशेषता है की यहां आने वाले मुर्दो और जिंदा इंसान दोनों का रास्ता एक है। मुर्दे यानी मृत शरीर की तो यात्रा इस मंदिर में आने के बाद समाप्त हो जाती है, मगर जीवित इंसान यहां दर्शन कर बाहर निकलकर अपनी जीवन यात्रा जारी रखता है।
जीवन और मृत्यु चक्र दिखाता मंदिर
धर्मशास्त्र के जानकार बताते है की श्मशान में मां कालिका का मंदिर होना जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक है। यह स्थान एक धार्मिक और आध्यात्मिक जुड़ाव को दर्शाता है, जहां जीवन के अंतिम संस्कार के साथ-साथ देवी की पूजा-अर्चना होती है। यह दर्शाता है कि मृत्यु केवल एक अंत नहीं है, बल्कि पुनर्जन्म और आत्मा की यात्रा का हिस्सा है। भक्तों के लिए, यह स्थान आशा और शांति का केंद्र है, जो उन्हें कठिन समय में संजीवनी प्रदान करता है।
नवरात्रि में होती है विशेष आराधना
रतलाम की मुक्तिधाम धर्मार्थ सेवा समिति के रामसिंह भाटी, राजेंद्र पुरोहित, संदीप पांचाल, मनोज प्रजापति, संतोष ओगड़, आयुष माली, चेतन गुर्जर आदि भक्तगण सेवा देते है। इस मंदिर में हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान एकम को नहीं बल्कि अमावस्या के दिन अखंड ज्योति प्रज्वलित की जाती है, जो यहां की विशेषता है। दोनों नवरात्रि में यहां विशेष आयोजन होते है। भक्त दूर – दराज से यहां मनोकामना लेकर आते है। दशहरे पर भव्य भंडारे की प्रसादी का आयोजन होता है। प्रसादी में दाल – बाटी व लड्डु जैसे विशेष व्यंजन बनाए जाते है। श्मशान में ही लोग इस भोजन प्रसादी को ग्रहण करते है। नवरात्रि पर यहां विशेष दर्शन व मां के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाया जाता है।
संत सोनीनाथ महाराज जी द्वारा की स्थापना
मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े भक्त राजेंद्र पुरोहित बताते है की यह मंदिर लगभग 50 साल पुराना है, जिसकी स्थापना गुरु संतश्री 1008 सोनीनाथ जी महाराज ने की थी। सोनीनाथ जी, जो स्व ब्राह्मण थे, ने अपने गुरु के आदेश पर जूते सुधारने का कार्य किया। शहर के रेलवे ग्राउंड के पास वे मोची का कार्य करते थे। वहीं उनकी दिव्यता के कारण भक्तों का जमावड़ा रहता था और दुकानदारी छोड़ सत्संग करते रहते थे। कई बार भक्तों ने उनसे कार्य छोड़कर स्थान पर विराजमान होने की अपील की लेकिन उन्होंने इंकार किया और सही समय व गुरु आज्ञा आने का कहा। जिसके बाद एक दिन उनसे जब निवेदन किया तो उन्होंने अपना काम छोड़कर संत सेवा में आने का आग्रह स्वीकार किया। उन्होंने श्मशान में रुकने की इच्छा जाहिर की तब उजाला ग्रुप के विजेंद्र जायसवाल द्वारा भक्तन बावड़ी में रुकने के लिए प्रबंध किए। महाराज ने सन 2005 में अपना मानव शरीर त्यागा और ब्रह्मलीन हुए। करीब 40 वर्षो से मंदिर समिति द्वारा महाशिवरात्रि पर छड़ी यात्रा का आयोजन किया जाता है।
मां कालिका से सीधे करते थे बात
संत सोनीनाथ जी के बारे में कहा जाता है की वे भक्तों की समस्याएँ सुनकर दूर करने की क्षमता रखते थे। उन्होंने कभी चमत्कार जैसा कुछ नहीं आभास कराया लेकिन चमत्कार होता था। उनके पास ऐसी सिध्दि थी जिसके माध्यम से वे भक्तों की पीड़ा को मां कालिका से बताते और समाधान करने का विनय करते। जिसके बाद उनकी समस्याएं दूर हो जाती। भक्तों के अनुसार वे मां कालिका से सीधे जीवंत संपर्क में रहते थे और उनसे बात करते थे। यहां विराजित प्रतिमा में प्राण होने की अनुभूति भी कई भक्तों को होती है।
(DISCLAIMER: इस लेख में वर्णित चमत्कारी मंदिर और संबंधित घटनाओं का विवरण भक्तों के अनुभवों और विश्वासों पर आधारित है। इसे किसी धार्मिक या वैज्ञानिक प्रमाण के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति का अनुभव और विश्वास अलग हो सकता है। पाठकों से अनुरोध है कि वे अपनी व्यक्तिगत धारणा और निर्णय के आधार पर मंदिरों और उनकी शक्ति के बारे में सोचें। किसी भी धार्मिक स्थान पर जाने से पहले उचित सावधानी बरतें और आवश्यक शोध करें।)