PM Narendra Modi Diwali 2024: प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार 11वीं बार जवानों के बीच मनाई दिवाली, कच्छ में बीएसएफ, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के जवानों संग बिताए खास पल

नई दिल्ली – पब्लिक वार्ता,
न्यूज डेस्क। PM Narendra Modi Diwali 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल भी अपनी परंपरा को कायम रखते हुए दिवाली जवानों के बीच मनाई। इस बार वे गुजरात के कच्छ पहुंचे, जहां बीएसएफ, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के जवानों के साथ इस खास अवसर को साझा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi in Diwali) ने जवानों को मिठाई बांटी और उनके साथ उत्सव मनाया। यह लगातार 11वां वर्ष है जब प्रधानमंत्री ने जवानों के साथ दिवाली मनाई है, उनके इस कदम ने सैनिकों (Indian Army) के बीच आत्मीयता का विशेष संचार किया है। पीएम मोदी पिछले 11 सालों से हर दिवाली के मौके को खास बना देते हैं. एक-दो बार छोड़ दें तो बीते 8-10 सालों में पीएम मोदी का दीपावली त्यौहार दिल्ली से दूर ही मनता है। पीएम मोदी ने थल, जल और वायु तीनों सेनाओं को कच्छ से बड़ा संदेश दिया।

पीएम मोदी से मिलकर खुश होती महिला जवानों की टुकड़ी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा की कच्छ के क्रीक क्षेत्र में लक्की नाला में बीएसएफ, सेना, नौसेना और वायु सेना के हमारे बहादुर कर्मियों के साथ दिवाली मनाकर खुशी हुई। यह क्षेत्र चुनौतीपूर्ण भी है और दुर्गम भी। दिन अत्यधिक गर्म होते हैं और ठंड भी पड़ती है। क्रीक क्षेत्र में अन्य पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी हैं। हमारे सुरक्षाकर्मी दुर्गम स्थानों पर भी डटे रहते हैं और हमारी रक्षा करते हैं। हमें उन पर बहुत गर्व है। हमारा संकल्प है नेशन फर्स्ट, भारतीय सेना के जवानों के बीच दिवाली मनाता हूं तो मेरी दिवाली की मिठास कई गुना बढ़ जाती है। दुश्मन जब भारतीय सेना को देखता है तो उसे उसके मंसूबों का अंत दिखता है। इस दौरान महिला सैनिक जवानों ने पीएम के सामने देशभक्ति गीत भी प्रस्तुत किए। मोदी ने सभी को दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए, अपने हाथों से मिठाई खिलाई।

मोदी की यह विशेष परंपरा 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से जारी है, जब वे पहली बार सियाचिन पहुंचे थे। जानिए कब और कहां गए मोदी –

1. 2014 – प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार सियाचिन पहुंचे और वहां तैनात जवानों के साथ दिवाली मनाई। उन्होंने जवानों को मिठाई खिलाई और उनका हौसला बढ़ाया।
  
2. 2015 – इस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी अमृतसर में जवानों के साथ दिवाली मनाने पहुंचे थे। उन्होंने जवानों को मिठाई खिलाई और भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस की सराहना की।

3. 2016 – पीएम मोदी ने लगातार तीसरे साल हिमाचल प्रदेश में चीन बॉर्डर के पास ITBP के जवानों के बीच दिवाली का जश्न मनाया। उन्होंने सीमावर्ती इलाके में तैनात जवानों को मिठाई खिलाकर उनका उत्साहवर्धन किया।

4. 2017 – इस वर्ष मोदी जम्मू-कश्मीर के गुरेज सेक्टर पहुंचे और वहां सैनिकों के साथ दिवाली मनाई। यह दौर उन सैनिकों के लिए एक यादगार पल बन गया, जिन्होंने प्रधानमंत्री को अपने साथ पाया।

5. 2018 – मोदी दिवाली के मौके पर उत्तराखंड के केदारनाथ पहुंचे और वहां के हरशिल गाँव के निकट तैनात भारतीय सशस्त्र बल और ITBP के जवानों के साथ दिवाली मनाई।

6. 2019 – प्रधानमंत्री इस साल जम्मू-कश्मीर के राजौरी क्षेत्र पहुंचे और LoC पर तैनात सैनिकों के साथ दिवाली मनाई। उन्होंने सीमा की रक्षा में जुटे जवानों के साहस की सराहना की।

7. 2020 – इस बार पीएम मोदी राजस्थान के जैसलमेर के लोंगेवाला पोस्ट पर तैनात सैनिकों के बीच दिवाली मनाने पहुंचे। उन्होंने जवानों को मिठाई खिलाई और भारतीय सीमा की सुरक्षा को लेकर उनकी भूमिका की प्रशंसा की।

8. 2021 – प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर पहुंचे। यहां उन्होंने कहा कि वे एक प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि सैनिकों के परिवार के सदस्य के तौर पर आए हैं।

9. 2022 – मोदी इस वर्ष कारगिल में सैनिकों के साथ दिवाली मनाने पहुंचे। उन्होंने कारगिल युद्ध में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी और वर्तमान में सीमा पर तैनात जवानों के साथ यह पर्व मनाया।

10. 2023 – इस साल प्रधानमंत्री हिमाचल प्रदेश के लेपचा पहुंचे और वहां जवानों के साथ दिवाली का जश्न मनाया।

11. 2024 – प्रधानमंत्री ने गुजरात के कच्छ में बीएसएफ, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के जवानों के साथ दिवाली मनाई। उन्होंने जवानों को मिठाई खिलाई और उनके साथ बातचीत कर देश के प्रति उनके समर्पण की सराहना की।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इन दौरों से न केवल सैनिकों का मनोबल बढ़ाया है, बल्कि देशवासियों को एकता, सुरक्षा और देशभक्ति के प्रति सजग रहने का संदेश भी दिया है। उनके इस विशेष प्रयास ने हर वर्ष जवानों को नई ऊर्जा दी है और देश के नागरिकों को गर्व का अनुभव कराया है।

MP News: मध्यप्रदेश के इस शहर में मुर्दे नहीं दीपक जलाते है; दिवाली पर फुलझड़ियों व रंगोलियों से सजता है श्मशान, जानिए क्या है वजह

रतलाम – पब्लिक वार्ता,
न्यूज डेस्क। MP News: मध्यप्रदेश के रतलाम में दिवाली से एक दिन पहले श्मशान दीपक से जगमगाते हुए दिखेगा। यहां रंगोलियां बनाई जाती है, आतिशबाजियां होती है। आमतौर पर श्मशान में जाने से लोग कतराते है, वो भी किसी खास त्योहार वाले दिन। लेकिन यहां इसके बिल्कुल उल्टा है। शहर का प्रसिद्ध त्रिवेणी मुक्तिधाम बुधवार शाम को दीपदान के आयोजन से जगमगा उठा। पूरे परिसर को रंगोली और दीपों से सजाया गया, जहां बच्चों ने फुलझड़ियां जलाकर और लोगों ने आतिशबाजी करके इस विशेष मौके को मनाया। महिलाओं ने ढोल की थाप पर पारंपरिक नृत्य कर माहौल को उल्लासमय बना दिया। त्रिवेणी मुक्तिधाम के अलावा शहर के भक्तन की बावड़ी और जवाहर नगर मुक्तिधाम में भी दीपों का यह उजाला देखने को मिला।

रंगोली बनाते प्रेरणा समाजिक व सांस्कृतिक संस्था के सदस्य

आयोजन को करने वाले संस्था के प्रमुख सदस्य गोपाल सोनी ने बताया, “दीपावली का यह 5 दिवसीय पर्व न केवल हमारे घर-आंगन को रोशन करता है, बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का भी एक माध्यम है। हम मुक्तिधाम में दीप जलाकर, रंगोली सजाकर, और आतिशबाजी कर पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं। इससे हम यह प्रार्थना करते हैं कि यदि हमारे पूर्वज अंधकार में हों, तो वे प्रकाश की ओर जाएं।” सोनी के अनुसार, इस परंपरा का आरंभ 2006 में हुआ था, और अब यह हर वर्ष बड़े उत्साह से मनाई जाती है।

तस्वीर में एक और जलती हुई चिता और दूसरी और जगमगाते दिवाली के दीपक

मोनिका शर्मा, जो अपने परिवार के साथ इस अवसर पर आईं, ने बताया, “पहले मुक्तिधाम में आने से लोग हिचकते थे, लेकिन अब यह परंपरा का हिस्सा बन गया है और सभी लोग इसमें शामिल होकर दीपदान करते हैं।” इस आयोजन का धार्मिक महत्व भी है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर किए जाने वाले इस दीपदान का उद्देश्य यमराज से यमयातना से मुक्ति प्राप्त करना है। गोपाल सोनी ने बताया, “नरक चतुर्दशी के इस दिन यमराज को दीपदान करने का विधान है, जिससे हमारे पूर्वजों को शांति प्राप्त होती है।

माना जाता है कि राजा बलि ने इस दिन का वरदान मांगा था कि जो व्यक्ति इस दिन यमराज को दीपदान करेगा, वह दुखों से मुक्त रहेगा।” पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्वजों की प्रसन्नता से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और पितृदोष भी समाप्त हो जाता है। रतलाम में इस अद्वितीय आयोजन ने न केवल पूर्वजों की स्मृति को जीवित रखा है बल्कि समाज में आस्था और परंपरा के महत्व को भी उजागर किया है।