Ratlam News: सम्पूर्ण सुरक्षा केंद्र द्वारा निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर का आयोजन, 210 मरीजों ने लिया लाभ  

रतलाम- पब्लिक वार्ता,

न्यूज़ डेस्क। Ratlam News: सम्पूर्ण सुरक्षा केंद्र, जिला चिकित्सालय रतलाम द्वारा बुधवार को आरोग्यम उप स्वास्थ्य केंद्र के सामने एक दिवसीय निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर आयोजित किया गया। यह शिविर सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक चला, जिसमें 210 मरीजों ने अपनी जांच करवाई और निःशुल्क दवाइयों का लाभ उठाया।  

शिविर में एचआईवी, वीडीआरएल, हेपेटाइटिस बी और सी, टीबी, रक्तचाप और शुगर जैसी प्रमुख बीमारियों की जांच की गई। मरीजों को हेल्थ काउंसलिंग के साथ 1097 टोल-फ्री हेल्पलाइन के बारे में जानकारी दी गई और एचआईवी के लक्षण एवं बचाव पर जागरूकता फैलाई गई।  

शिविर में मौजूद चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों का सहयोग  

शिविर में BMO डॉ. देवेंद्र कुमार मौर्य की उपस्थिति में डॉ. पूजा राठौर और डॉ. प्रियांशु शर्मा ने मरीजों की जांच की। इस दौरान आईसीटीसी परामर्शदाता धर्मेंद्र बड़ोदिया, STS राहुल पाटीदार, फार्मासिस्ट संजय माली, लैब टेक्नीशियन महेश कटारा और निलेश पांचाल ने अहम भूमिका निभाई।  

इसके अलावा, सीएचओ रोहित पाटीदार, ममता पाटोदी, मनीषा भाटे (एएनएम), आशा सहयोगिनी हेमलता शर्मा, आशा कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने भी शिविर को सफल बनाने में योगदान दिया।  

सम्पूर्ण सुरक्षा कार्यक्रम के तहत जागरूकता अभियान जारी  

सम्पूर्ण सुरक्षा केंद्र के प्रोग्राम मैनेजर हरीश बिसेन ने बताया कि सरकार के सम्पूर्ण सुरक्षा अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। इसका उद्देश्य गंभीर बीमारियों की रोकथाम और जागरूकता बढ़ाना है, जिससे अधिक से अधिक लोग समय पर अपनी जांच करवा सकें और उचित इलाज पा सकें।  

Indore News: विश्व श्रवण दिवस पर नुक्कड़ नाटक से जागरूकता, स्पीकर और ईयरफोन के अधिक प्रयोग से सुनने की क्षमता पर खतरा

इंदौर- पब्लिक वार्ता,

न्यूज़ डेस्क। Indore News: डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय के अस्पताल परिसर में 3 मार्च 2025 को विश्व श्रवण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर डीन डॉ. अनीता मूथा के नेतृत्व में और नाक, कान, गला रोग विभागाध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार मौर्य तथा सहायक प्राध्यापक डॉ. पवन कुमार शर्मा, डॉ. लोकेश भालोट और डॉ. हिमानी नरेश सिंह के मार्गदर्शन में 2024 बैच के विद्यार्थियों ने एक जागरूकता नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया।  

इस नाटक के माध्यम से बताया गया कि तेज आवाज में स्पीकर और ईयरफोन के लगातार इस्तेमाल से किस तरह कम उम्र में ही लोगों की सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। धीरे-धीरे यह आदत बहरेपन का कारण बन सकती है। नुक्कड़ नाटक के बाद नाक, कान, गला रोग विभाग के विशेषज्ञों ने मरीजों को इससे होने वाली समस्याओं और उनके समाधान के बारे में जानकारी दी।  

### सुनने की क्षमता को सुरक्षित रखने के लिए डॉक्टरों की सलाह  

– तेज आवाज में ईयरफोन या स्पीकर का कम से कम उपयोग करें।  

– लगातार ईयरफोन लगाने से बचें, हर 30 मिनट में ब्रेक लें।  

– अगर सुनने में दिक्कत हो रही है तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं।  

– स्वस्थ कानों के लिए नियमित जांच करवाएं और संतुलित आहार लें।  

कम उम्र में ही सुनने की समस्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, ताकि लोग अपनी सुनने की क्षमता के प्रति जागरूक हों और तेज आवाज के दुष्प्रभावों से बच सकें।

Ratlam News: खुशियों की दास्तान: 6 माह की नवजात शिशु को मिला नया जीवन

रतलाम- पब्लिक वार्ता,

न्यूज़ डेस्क। Ratlam News: चिकित्सा के क्षेत्र में जिला चिकित्सालय रतलाम ने एक और मिसाल कायम की है। सुवासरा, उज्जैन निवासी बेबी ऑफ भावना/नवीन (ध्रुव), उम्र 6 माह को गंभीर स्थिति में 13 फरवरी को मातृ एवं शिशु चिकित्सालय यूनिट, जिला चिकित्सालय रतलाम में भर्ती कराया गया था। परिजनों ने बताया कि इससे पहले बच्चे का नागदा और एक निजी अस्पताल में इलाज हुआ, लेकिन सुधार न होने पर वे उसे रतलाम लेकर आए।  

गंभीर अवस्था में भर्ती, विशेषज्ञों ने किया सफल उपचार  

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एम.एस. सागर के अनुसार, भर्ती के समय बच्चे को सीवियर निमोनिया विथ सेप्सिस विथ जीडीडी डायग्नोस किया गया था। शिशु झटकों, तेज सांस, 105 डिग्री फारेनहाइट तापमान और सेप्टिक शॉक की स्थिति में था। विशेषज्ञ डॉक्टरों ने तत्काल सी-पैप मशीन से ऑक्सीजन देना शुरू किया और झटकों, तापमान और शॉक का प्रभावी प्रबंधन किया।  

लगातार पांच दिन तक बनी रही गंभीर स्थिति  

शिशु की हालत पांच दिन तक नाजुक बनी रही। डॉक्टरों की टीम ने सी-पैप, एंटी-कंवलजेंट, आयनोट्रॉप्स और अन्य आवश्यक उपचारों के माध्यम से उसकी स्थिति को नियंत्रित किया। इसके बाद धीरे-धीरे सुधार दिखने लगा।  

इलाज के आठवें दिन हुआ ब्लड ट्रांसफ्यूजन  

शिशु की स्थिति में सुधार के बावजूद, खून की कमी के चलते आठवें दिन ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया। दसवें दिन से आईवी इलाज बंद कर ओरल फीडिंग शुरू की गई। ग्यारहवें दिन से बच्चे को कटोरी-चम्मच से फीडिंग सिखाई गई।  

बारहवें दिन मिली नई जिंदगी, स्वस्थ होकर डिस्चार्ज  

लगातार बारह दिनों तक चले उपचार और देखभाल के बाद शिशु को स्वस्थ घोषित कर डिस्चार्ज कर दिया गया। परिजनों ने डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का आभार व्यक्त किया और जिला चिकित्सालय में उपलब्ध उन्नत चिकित्सा सुविधाओं की सराहना की।  

जिला चिकित्सालय रतलाम में पीआईसीयू की बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं गंभीर स्थिति में आए नवजातों को नया जीवन दे रही हैं। यह सफलता एक बार फिर रतलाम के स्वास्थ्य तंत्र की सुदृढ़ता को दर्शाती है।

Ratlam News: सुखेड़ा में नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित, 202 मरीजों का हुआ परीक्षण

रतलाम- पब्लिक वार्ता,

न्यूज़ डेस्क। RatlamNews: जिला चिकित्सालय रतलाम के सम्पूर्ण सुरक्षा केंद्र द्वारा सोमवार को सुखेड़ा में एक दिवसीय नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। यह शिविर सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक आयोजित किया गया, जिसमें विभिन्न बीमारियों की जांच और नि:शुल्क दवाइयां वितरित की गईं।  

शिविर का शुभारंभ सरपंच महावीर मेहता की उपस्थिति में किया गया। इस दौरान डॉ. प्राची पालीवाल, डॉ. अरुण पाटीदार, डॉ. प्रियांशु शर्मा, डॉ. अरुण मालपानी सहित स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने लगभग 202 मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण किया। शिविर में एचआईवी, वीडीआरएल, हेपेटाइटिस बी और सी, टीबी, रक्तचाप, शुगर और मलेरिया की जांच की गई।  

मरीजों को नि:शुल्क दवाइयां दी गईं और स्वास्थ्य जागरूकता (IEC) सामग्री प्रदान की गई। इस दौरान एचआईवी के लक्षण, निदान और यौन रोगों की जानकारी भी दी गई। साथ ही, 1097 टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर के बारे में बताया गया, जिससे जरूरतमंद लोग मुफ्त परामर्श और सहायता प्राप्त कर सकें।  

शिविर को सफल बनाने में अरविंद पाटीदार (फार्मासिस्ट), मनीष शर्मा (डीएसआरसी परामर्शदाता), लैब टेक्नीशियन सय्यद सैफ अली, एसएसके ओआरडब्ल्यू हिमांशु चौहान सहित सुखेड़ा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की टीम का विशेष योगदान रहा। सीएचओ हेमलता शर्मा, सपना राठौर, रेखा त्रिवेदी, एएनएम विनीता मुनिया, गीता रावत, आशा सहयोगिनी पवित्रा शर्मा, और आशा कार्यकर्ता सरोज कीर, सुनीता सैनी, राधा सेन, राधा कुंवर, नीलम मकवाना ने भी अहम भूमिका निभाई।  

सम्पूर्ण सुरक्षा केंद्र के प्रोग्राम मैनेजर हरीश बिसेन ने बताया कि शासन द्वारा संचालित सम्पूर्ण सुरक्षा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। इन शिविरों का उद्देश्य गंभीर बीमारियों की रोकथाम करना और जरूरतमंद मरीजों को नि:शुल्क जांच, परामर्श व उपचार उपलब्ध कराना है।  

Ratlam News: नि क्षय मित्र अभियान के तहत इप्का लेबोरेट्री ने 100 टीबी मरीजों को फूड बास्केट दी  

रतलाम- पब्लिक वार्ता,

न्यूज़ डेस्क। Ratlam News: प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत जिले में चल रहे 100 दिवसीय नि क्षय भारत शिविर अभियान के दौरान टीबी मरीजों को पोषण सहायता प्रदान करने की मुहिम लगातार जारी है। इसी कड़ी में इप्का लेबोरेट्री द्वारा 100 फूड बास्केट जिला क्षय केंद्र रतलाम को प्रदान की गई, जिससे टीबी मरीजों को अतिरिक्त पोषण सहायता मिल सके।  

अब तक 401 लोग बन चुके हैं नि क्षय मित्र  

जिले में नि क्षय मित्र योजना के तहत अब तक 401 लोग जुड़ चुके हैं, जो टीबी मरीजों को पोषण आहार देकर उनकी मदद कर रहे हैं। कलेक्टर राजेश बाथम ने भी आम जनता से इस अभियान में सक्रिय भागीदारी निभाने और अधिक से अधिक नि क्षय मित्र बनने की अपील की है, ताकि टीबी मरीजों को बेहतर पोषण मिल सके और उनका जल्द इलाज संभव हो।  

इप्का लेबोरेट्री की सामाजिक पहल  

इप्का लेबोरेट्री के वाइस प्रेसिडेंट दिनेश सियाल, प्रशासकीय अधिकारी विक्रम कोठारी और डॉ. मनीष गुप्ता (मेडिकल ऑफिसर) द्वारा 100 फूड बास्केट जिला क्षय केंद्र रतलाम को सौंपी गई। इन फूड बास्केट में 5 किलो आटा, 1 किलो तुअर दाल, 1 किलो मूंगफली और 1 किलो चना शामिल है, जो हाई प्रोटीन डाइट के रूप में टीबी मरीजों के पोषण के लिए जरूरी है।  

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. एम. एस. सागर ने इप्का लेबोरेट्री के इस योगदान की सराहना करते हुए कहा कि टीबी मरीजों के लिए संतुलित और पौष्टिक आहार बेहद जरूरी है, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सके।  

नि क्षय पोषण योजना के तहत 1000 रुपये प्रति माह सहायता  

जिला क्षय अधिकारी डॉ. अभिषेक अरोरा ने बताया कि नि क्षय पोषण योजना के अंतर्गत टीबी मरीजों को हर माह 1000 रुपये की सहायता राशि उनके बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर की जा रही है। इसके साथ ही, नि क्षय मित्र योजना के तहत कोई भी व्यक्ति टीबी मरीजों के लिए फूड बास्केट प्रदान कर सकता है।  

 टीबी के मरीजों को पोषण आहार क्यों जरूरी  

टीबी मरीजों को स्वस्थ होने के लिए उच्च प्रोटीन युक्त आहार की आवश्यकता होती है। पोषण की कमी से इलाज की प्रभावशीलता कम हो सकती है और मरीजों की रिकवरी में देरी हो सकती है। नि क्षय मित्र योजना के तहत मिलने वाली फूड बास्केट से मरीजों को सही पोषण मिल रहा है, जिससे उनका टीबी से उबरना तेजी से संभव हो रहा है।  

 सीएमएचओ और जिला क्षय अधिकारी ने इप्का लेबोरेट्री का जताया आभार  

सीएमएचओ डॉ. एम. एस. सागर और डॉ. अभिषेक अरोरा ने इप्का लेबोरेट्री के वाइस प्रेसिडेंट दिनेश सियाल, विक्रम कोठारी और डॉ. मनीष गुप्ता का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनका यह योगदान टीबी मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण सहायता साबित होगा।  

नि क्षय मित्र कैसे बन सकते हैं  

जो भी व्यक्ति या संगठन टीबी मरीजों की मदद करना चाहता है, वह नि क्षय मित्र योजना से जुड़ सकता है। इसके तहत वे जिला क्षय केंद्र में आकर फूड बास्केट प्रदान कर सकते हैं, जिससे टीबी मरीजों को हर माह आवश्यक पोषण मिल सके।  

नि क्षय अभियान के तहत जिले में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे टीबी को जड़ से खत्म किया जा सके और समाज को स्वस्थ बनाया जा सके।

Ratlam News: डॉ आनंद चंदेलकर सेवानिवृत्त, डॉ एम एस सागर बने नए CMHO रतलाम

रतलाम- पब्लिक वार्ता,

न्यूज़ डेस्क। Ratlam News: रतलाम जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) एवं पूर्व सिविल सर्जन आनंद चंदेलकर आज अपनी शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त हो गए। उनकी सेवानिवृत्ति पर जिला चिकित्सालय, जिला मलेरिया कार्यालय एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में सम्मान समारोह आयोजित किया गया।  

इस अवसर पर विभागीय कर्मचारी महेंद्र सिंह राठौर भी अर्धवार्षिकी आयु पूर्ण होने के बाद सेवानिवृत्त हुए। कार्यक्रम में नवागत मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एम एस सागर ने आनंद चंदेलकर को शाल, श्रीफल और पुष्पहार पहनाकर सम्मानित किया।  

सेवानिवृत्ति समारोह में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। कृपाल सिंह राठौर, बी एल तापड़िया, अभिषेक अरोरा, ममता शर्मा, अंकित जैन, कैलाश चारेल, प्रणब मोदी, रजत दुबे सहित कई अन्य चिकित्सकों और विभागीय कर्मचारियों ने आनंद चंदेलकर को सम्मानित किया और उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दीं।  

सभी विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने आनंद चंदेलकर को अभिनंदन पत्र भेंट कर भावभीनी विदाई दी। इस मौके पर उपस्थित सभी अतिथियों ने उनके योगदान की सराहना की और उनके स्वस्थ एवं सुखमय भविष्य की कामना की।

Dengue से बचाव: बकरी के दूध की डिमांड अचानक क्यों बढ़ी, डेंगू जैसी जानलेवा बीमारी में इन बातों का रखे ध्यान, क्या कहते है एक्सपर्ट!

विशेषज्ञों की सलाह: डेंगू (Dengue) के घरेलू उपचार में सतर्क रहें, डॉक्टर की सलाह से ही करे घरेलू उपाय!, इन बातों को ध्यान रख बच सकते है आप…

पब्लिक वार्ता,
न्यूज डेस्क। बारिश के मौसम के साथ डेंगू (Dengue) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। देशभर में डेंगू से बचाव और इलाज के लिए लोग घरेलू उपचारों की ओर रुख कर रहे हैं। इनमें गिलोय, पपीते के पत्ते और बकरी का दूध प्रमुख रूप से शामिल हैं। हालांकि, चिकित्सा विशेषज्ञ इन नुस्खों का इस्तेमाल सावधानी से करने की सलाह दे रहे हैं।

रतलाम मेडिकल कॉलेज (GMC Ratlam) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सोहन मंडलोई (Dr. Sohan Mandloi) के अनुसार “डेंगू बुखार के दौरान पपीते के पत्ते और गिलोय जैसे घरेलू नुस्खे कुछ हद तक लाभकारी हो सकते हैं। पपीते के पत्तों में मौजूद पपेन और फ्लेवोनोइड्स प्लेटलेट काउंट बढ़ाने और इम्युनिटी को सुधारने में सहायक माने जाते हैं, लेकिन इनका असर वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह प्रमाणित नहीं है। इसके साथ ही अधिक मात्रा में इनका सेवन नुकसानदायक हो सकता है, जिससे मतली और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।” इस तरह के कई पेशेंट हमारे पास आते है, जो घर पर इलाज शुरू कर देते है और बाद में उन्हें दोगुनी मार झेलना पड़ती है।

बकरी के दूध की मांग बढ़ी
डेंगू के इलाज के लिए बकरी के दूध (Got Milk in dengue) की मांग में भी तेजी देखी जा रही है। डॉक्टरों के मुताबिक, बकरी के दूध में सेलेनियम जैसे मिनरल्स मौजूद होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद कर सकते हैं और यह गाय के दूध के मुकाबले आसानी से पचने योग्य होता है। इसके चलते कई लोग इसे डेंगू से निपटने के लिए बेहतर मानते हैं। डॉ. सोहन मंडलोई का कहना है की “बकरी का दूध इम्युनिटी बढ़ाने में मदद कर सकता है, लेकिन इसे डेंगू के मुख्य इलाज के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह केवल सहायक हो सकता है, न कि इसके जरिए डेंगू का इलाज किया जा सकता है।”

हर्बल ट्रीटमेंट के बारे में चेतावनी
डॉ. मंडलोई ने यह भी चेतावनी दी कि घरेलू नुस्खों और हर्बल उपचारों को मेडिकल ट्रीटमेंट का विकल्प नहीं माना जा सकता। “गिलोय और पपीते के पत्ते जैसी औषधियां इम्यून सिस्टम को मजबूत कर सकती हैं, लेकिन इनका अत्यधिक उपयोग लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है।” डॉक्टर ने लोगों को सलाह दी है कि वे किसी भी तरह के घरेलू उपचार को अपनाने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श लें और डेंगू जैसे गंभीर मामलों में मेडिकल देखरेख को प्राथमिकता दें। लक्षण गंभीर होते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है।

Dehradun: 7 महीने के बच्चे के पेट में भ्रूण मिलने का दुर्लभ मामला, डॉक्टर भी हुए हैरान

पब्लिक वार्ता,
न्यूज डेस्क। देहरादून (Dehradun) के स्वामी हिमालयन मेडिकल कॉलेज में एक अत्यंत दुर्लभ मामला सामने आया है, जहां 7 महीने के बच्चे के पेट में भ्रूण पाया गया। माता-पिता को बच्चे का पेट अचानक फूलता दिखने पर शक हुआ और उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया। प्रारंभिक जांच में डॉक्टरों को लगा कि यह पेट में गांठ का मामला है, लेकिन एक्स-रे रिपोर्ट से पता चला कि बच्चे के पेट में भ्रूण विकसित हो रहा था।

मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार फीटस-इन-फीटू (Fetus in Fetu) नामक यह स्थिति अत्यधिक दुर्लभ होती है, जिसमें एक भ्रूण दूसरे भ्रूण के भीतर विकसित होने लगता है। डॉक्टर संतोष सिंह के अनुसार, इस तरह के मामले लाखों में से एक बार ही देखने को मिलते हैं। बच्चे का ऑपरेशन सफलतापूर्वक किया गया और अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।

क्या है फीटस-इन-फीटू?
फीटस-इन-फीटू मानव भ्रूण विकास की एक असामान्य और दुर्लभ स्थिति है। यह लगभग 5,00,000 में से एक गर्भावस्था में होता है, जिसमें भ्रूण के भीतर एक और भ्रूण विकसित होने लगता है। इस स्थिति का पता अक्सर जन्म के बाद ही चल पाता है, जब बच्चे के पेट का आकार असामान्य रूप से बढ़ता है।

Health Alert : पत्तागोभी का कीड़ा जो पेट के रास्ते पहुंचता है दिमाग तक, खाने से पहले रखनी होगी सावधानी

ऐसा कीड़ा जो गर्म पानी में उबालने से भी नहीं मरता, जानिए पूरी खबर!

पब्लिक वार्ता – हेल्थ डेस्क,
जयदीप गुर्जर। कहा जाता है हरी सब्जियों का सेवन करना स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। मगर एक ऐसी हरी सब्जी की बात की जाए जो जानलेवा सबित हो सकती है तो हर कोई अचंभित होगा। सर्दियों का मौसम आ चुका है, सर्दियों में पत्तागोभी या बंदगोभी की आवक भी खूब होती है। पत्तागोभी (Cabbage) में अन्य सब्जियों की तरह न्यूट्रिशन और प्रोटीन से भरपूर होती है। पत्ता गोभी में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो डाइटिंग करने वालों के लिए फायदेमंद है। इन सब के बीच एक चर्चा काफी चल रही है जिसमें पत्तागोभी खाने से कीड़े दिमाग में चले जाते हैं, पत्तागोभी का कीड़ा दिमाग को गला देता है जैसी बातें सामने आ रही है। इसी बारे में हम विस्तार से जानेंगे और सावधानियों पर भी चर्चा करेंगे।

ऐसा कीड़ा जो नहीं दिखता
पत्तागोभी में कुछ कीड़े दिखाई देते हैं, जिनका रंग हल्का हरा और कभी-कभी सफ़ेद होता है। मगर कुछ कीड़े ऐसे भी होते हैं जो दिखाई नहीं देते जैसे कि टेपवर्म (tapeworm)। ये कीड़े और परजीवी इतने छोटे होते हैं कि इन्हें हमारी नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है। यही टेपवर्म पत्तागोभी से हमारे पेट तक पहुंचता है और फिर दिमाग तक। कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि पत्तागोभी को अगर सही तरह से पकाकर नहीं खाया जाए तो इसमें मौजूद टेपवर्म (कीड़ा) शरीर में पहुंच सकता है जो कि जानलेवा साबित हो सकता है। कहा जाता है कि यह कीड़ा खाने के साथ पेट में जाता है और फिर आंतों से होता हुआ ब्लड फ्लो की मदद से दिमाग तक पहुंच जाता है।

टेपवर्म जानवरों और मनुष्यों को संक्रमित करते है। वह आंतों में रहते हैं और आपके द्वारा खाए जाने वाले पोषक तत्वों को खाते हैं जिससे उनकी कमी के कारण मतली, कमजोरी, दस्त और थकान जैसे लक्षण दिखने लगते है। आपको बता दें कि गोभी के कीड़े में रिजिस्टेंस पावर इतना ज्यादा होता है कि वह पेट में पाए जाने वाले एसिड और एंजाइम से भी नहीं मरता है। यह दिमाग पर असर डालता है। रोगी को दौरे पड़ने लगते हैं।

दिमाग में कीड़े के क्या होते लक्षण?
अगर टेपवर्म शरीर में पहुंच जाते हैं तो वे आंत में छेद करके ब्लड वेसिल्स तक पहुंच जाते हैं और फिर खून के साथ शरीर के दूसरे हिस्से जैसे दिमाग, लिवर और आंख में भी चले जाते है। डॉक्टर्स के अनुसार ‘पेट दर्द, मिरगी के दौरे, डायरिया, कमजोरी, उल्टी, चक्कर आना, सांस फूलने जैसी कई समस्याएं इसके लक्षण हो सकती है। यह लक्षण कई बार तुरंत, कई बार लंबे समय के बाद नजर आते है। दिमाग में कीड़े की बीमारी न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस कहा जाता है।

ऐक्सपर्टस की माने तो पत्तागोभी को ना खाना इसका उपाय नहीं है बल्कि अच्छे से साफ करने की जरूरत है। घबराने की जरूरत नहीं है। अगर किसी को यह बीमारी हो भी जाती है तो भी इसका पूरा इलाज है और कोई भी सर्जरी की जरूरत नहीं होती। समय पर इलाज ना मिलने से यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में टेपवर्म के करीब 12 लाख से ज्यादा मरीज है।

क्या रखे सावधानी?
डॉक्टर्स के अनुसार कई बार टेपवर्म गर्म पानी मे उबलने से भी नहीं मरता। पत्तागोभी या जमीन में उगी किसी भी सब्जी को गुनगुने पानी में नमक डालकर 30 मिनट के लिए छोड़ दें। उसके बाद उस पानी के फेंक कर पुनः सब्ज़ियों को रगड़ के कम से कम दो बार धोकर ही इसका भोजन में इस्तेमाल करें। कीड़ों से बचे रहने के लिए ये ही सबसे कारगर उपाय हो सकता है। इसके अलावा सब्जी को ठीक से पकाया जाना बहुत जरूरी है।

ऐसा नहीं है कि आपको पत्तागोभी खाना बिल्कुल बंद कर देना चाहिए, पर खाने से पहले उसे सही से धोना और सुरक्षात्मक उपाय करना बहुत जरूरी है। सिर्फ पत्तागोभी ही नहीं जमीन के नीचे उगने वाली सब्जियां (गाजर, आलू, मूली, अदरक) को भी खाने से पहले अच्छी तरह से साफ करना जरूरी है। गंदे पानी के संपर्क में आने के कारण इनमें भी कीड़े हो सकते हैं जिनके कारण बीमारियों के विकसित होने का जोखिम रहता है। फलों-सब्जियों की साफ-सफाई बहुत जरूरी है।

(DISCLAIMER : यह लेख विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित है। इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।)