भैरव मंदिर ऐसा भी! : यहां गलती होने पर तुरंत मिलती है सजा, निःसंतान दंपत्तियों के लिए वरदान है ये मंदिर

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कई किस्से कहानियों के साथ आज भी जिंदा है परंपरा, पढ़िए विशेष खबर रतलाम के इस अनूठे भैरव मंदिर की….

पब्लिक वार्ता – रतलाम,
जयदीप गुर्जर। भारत धार्मिक मान्यता प्रधान देश है। यहां
हर त्यौहार अपना विशेष महत्व रखता है। देश के हर राज्य व शहर में चमत्कारिक देवस्थल मौजूद हैं जहां चमत्कारिक घटनाओं की साक्षात अनुभूति होती है। आज हम बात करेंगे मध्य प्रदेश के रतलाम शहर में स्थित ऐसे ही एक प्राचीन स्थल की। यहां के धभाई जी का वास में स्थित भैरव मंदिर अपनी अनोखी गाथाओं व किस्से कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है की यहां भूत बाधाओं से छुटकारा मिलने के साथ – साथ निःसंतान दंपत्ति को संतान का सुख भी मिलता है। इसके अलावा यहां अगर पूजन – पाठ में गलती या खराब मन से कोई पहुंचता है तो उसे तुरंत भैरव महाराज सजा देते है। संबंधित व्यक्ति को उसी समय गलती का एहसास हो जाता है।

इस मंदिर को पछाड़मल भैरव के नाम से जाना जाता है। इस नाम के पीछे मान्यता है कि जो कोई भी गलती करता है, तो उसे भैरवनाथ पछाड़ कर सजा देते है। भैरवनाथ को मां दुर्गा के बाद पूजने का विशेष महत्व है कहा जाता है कि जिस प्रकार नवरात्रि में मां दुर्गा की आराधना महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार भगवान भैरवनाथ की आराधना भी महत्व रखती है। दर्शन के लिए इस मंदिर तक आप शहर के थावरिया बाजार या हरमाला रोड होते हुए आसानी पहुंच सकते है।

भक्तों को स्वयं भैरव नाथ की प्रतिमाएं करती है आकर्षित!

दो प्रतिमाएं विराजमान, मदिरा व दूध का लगता भोग :
पिछले कई वर्षों से मंदिर में सेवा कर रहे रविंद्रसिंह सोनगरा बताते हैं कि यहां भैरवनाथ की काला व गौरा दो प्रतिमाएं विराजमान है। इनमें से एक को मदिरा तो दूसरे को दूध का भोग लगता है। इन प्रतिमाओं की स्थापना की सही जानकारी किसी को नहीं मालूम है। बताया जाता है कि रतलाम रियासतकाल से यह मंदिर स्थापित है। यहां नौ दिन अखंड ज्योत व जवारों की स्थापना होती है। दशहरे पर विधि विधान से जवारों का विसर्जन किया जाता है। देश भर से यहां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते है। यहां रियासतकाल के दौर से जवारों का विसर्जन किया जा रहा है जिसे स्थानीय लोग बाड़ी के नाम से भी जानते है। फिलहाल मंदिर के जीर्णोद्धार का काम शुरू होगा जो कि जनसहयोग से पूरा किया जाएगा।

मनोकामना पूरी करते है पछाड़मल भैरव :
इस मंदिर के बारे में कई किस्से कहानियां आज भी जिंदा है। भक्त यहां आज भी मनोकामना लेकर आते है। जिनकी मनोकामनाएं यहां से पूरी हुई है और शहर के बाहर है वे लोग नवरात्रि में विशेष रूप से यहां आते है। मान्यता है की यहां जवार विसर्जन के दौरान शामिल होने पर दुख दर्द भी विसर्जित हो जाते है। विसर्जन के बाद लोग जवार को अपने साथ लेकर घर आते है और लाल कपड़े में बांध कर भी रखते है। लोगों द्वारा दावा किया जाता है कि यहां भूत बाधाओं व शारीरिक कष्टों से भी छुटकारा मिलता है। निःसंतान दंपत्ति यहां संतान की मनोकामना लेकर जाते है तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। भैरव को यहां मदिरा व दूध के अलावा लोग सिंदूर का चोला चढ़ाते है। कई लोग यहां बकरे की बलि या दाल, बाटी व चूरमे की मन्नत भी रखते है। इस क्षेत्र के लोगों की मान्यता है कि यहां मन्नत लेने से सबकुछ मिलता है। सबसे खास बात है कि यहां मन्नत के समय कुछ खास चढ़ावा नहीं चढ़ाना होता है। मदिरा, दूध या नारियल से ही भैरव बाबा खुश हो जाते है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। पब्लिक वार्ता इस बारे में किसी प्रकार की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)

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