बछ बारस पर्व : विजयवर्गीय वैश्य समाज का नवाचार, पहली बार 13 परिवारों ने किया सामूहिक व्रत का उद्यापन

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बछ बारस की कहानी भी अनूठी, जब पहली बार जंगल गए कृष्ण तो हुआ कुछ ऐसा!

रतलाम – पब्लिक वार्ता,
जयदीप गुर्जर।
विजयवर्गीय वैश्य समाज रतलाम के विजयवर्गीय महिला मंडल द्वारा बछ बारस का पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस बार बछ बारस पर्व पर समाज ने एक नवाचार की शुरुआत की। समाज के आव्हान पर 13 परिवारों ने बछ बारस व्रत का अलग – अलग उद्यापन करने की बजाय सामुहिक रूप से उद्यापन किया। यह संभवतः पहली बार है जब बछ बारस व्रत का उद्यापन सामूहिक हुआ है।

समाज के रत्नेश विजयवर्गीय ने बताया कि विजयवर्गीय वैश्य समाज रतलाम की पहल पर पहली बार सामूहिक व्रत की परंपरा प्रारंभ की गई। इस अवसर पर 200 से अधिक महिलाओं ने सामुहिक भोजन किया। सामुहिक उद्यापन से एक अकेले व्यक्ति पर भार नहीं पड़ा, बल्कि इसका खर्च अलग अलग 13 परिवारों ने उठाया। जिससे प्रत्येक परिवार के खर्च व समय दोनों की बचत हुई। कार्यक्रम में सम्मिलित सभी महिलाओं को चांदी की बिछिया भेंट दी गई। इस दौरान महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमति श्रद्धा विजयवर्गीय, श्रीमति ललिता विजयवर्गीय, श्रीमति
उषा विजयवर्गीय, श्रीमति कांति विजयवर्गीय, श्रीमति सुधा विजयवर्गीय, श्रीमति कोसल्या विजयवर्गीय, श्रीमति अंजना विजयवर्गीय, श्रीमति सुमन विजयवर्गीय, श्रीमति दीपिका विजयवर्गीय, श्रीमति आकांक्षा विजयवर्गीय,श्रीमति सुरभि विजयवर्गीय, श्रीमति रितु विजयवर्गीय,श्रीमति आयुषी विजयवर्गीय, श्रीमति नेहा विजयवर्गीय आदि शामिल रही।

पहली बार गाय चराने निकले थे भगवान :
बछ बारस मनाने के पीछे मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण पहली बार गाय चराने घर से निकले थे। यह पर्व माता यशोदा और श्रीकृष्ण के बीच स्नेह का जीवंत प्रतीक है। भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को भगवान श्रीकृष्ण जंगल में गाय चराने गए थे। पुत्र की चिंता और उसे कष्ट व दुविधा से बचाने के लिए माता यशोदा ने कई जतन किए। उनका लाड़ला इतनी देर घर से बाहर रहने वाला था। इसलिए माता पुत्र के पसंद के सभी व्यंजन बनाए। श्रीकृष्ण के प्रथम बार जंगल में जाने पर गोकुल गांव की हर माता ने कृष्ण के प्रति दुलार प्रकट करने के लिए उनके पसंद के व्यंजन बनाए। श्रीकृष्ण के साथ जंगल जाने वाली गायों और बछड़ों के लिए भी मूंग, मोठ और बाजरा अंकुरित किया गया। जब वे वापस लौटे तो गोकुल वासियों ने गाय व बछड़ों का पूजन किया। इस तरह बछ बारस का व्रत और पर्व अस्तित्व में आया।

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